गोविन्द चतुर्वेदी
क्या भारत और पाकिस्तान के सम्बंधों में कभी ‘अच्छे दिन’ आएंगे अथवा पिछले ७० सालों की तरह आने वाले सैंकड़ों साल (पाकिस्तान के हुक्मरान तो १००० साल की बात करते हैं) तक दोनों देशों की जनता यूं ही लड़ते-लड़ते फना होती रहेगी? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है ! शायद ऊपर वाले के पास भी नहीं है? तभी तो दोनों तरफ कुर्सी पर कोई भी बैठ जाए, लड़ाई का माहौल खत्म नहीं होता। बिना किसी तरफदारी के यह कहने में किसी को कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि, दोनों देशों के सम्बंधों में खराबा दर खराबा होने की ज्यादा जिम्मेदारी पाकिस्तान की है। इसका सीधा सा कारण वहां की जम्हूरियत पर सेना का हावी होना है। और यह भी किसी से छिपा नहीं है कि, पाकिस्तान की सेना पर कौन हावी है? आज की बात छोड़ दें तो कुछ साल पहले तक वहां की सेना अमरीका के इशारों पर नाचती थी। फिर उस पर चीन का दखल बढऩे लगा और आज की तारीख में उस पर चीन के साथ-साथ कट्टरपंथी-उग्रवादियों का साया हावी है। पिछले दो-तीन दिनों के दौरान पाकिस्तान में हुए कुछ घटनाक्रमों ने इस पर मोहर भी लगा दी है। मसलन भारतीय सर्जिकल ऑपरेशन पर चर्चा के लिए जिस दिन पाकिस्तान में, सर्वदलीय बैठक हुई, उसी दिन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ एक और गुप्त बैठक हुई जिसमें निर्वाचित सरकार के कुछ असरदार वजीरों के साथ वहां की फौज, विदेश और नागरिक प्रशासन के आला अफसरों ने हिस्सा लिया। इस बैठक का जो मजमून बाहर आया है, (उस पर भरोसा सोच-समझ कर ही किया जाना चाहिए) उसके अनुसार विदेश सचिव एजाज चौधरी ने बताया कि, किस तरह पािकस्तान दुनिया में अलग-थलग पड़ा हुआ है ! किस तरह अमरीका सहित दुनिया के ज्यादातर मुल्क हमारी बात से सहमत होना तो दूर, हमें सुनने तक को तैयार नहीं हैं। और यह भी कि, यदि यही सब चलता रहा तो आने वाला वक्त पाकिस्तान के लिए और मुश्किलों का होगा। ऐसा क्यों हो रहा है, यह पूछे जाने पर चौधरी ने कई कारण गिनाए। जैसे अमरीका हक्कानी नेटवर्क पर नियंत्रण चाहता है। भारत मुम्बई और पठानकोट के आरोपियों के साथ जैश, मसूद, हाफिज और लश्कर पर दिखता हुआ एक्शन चाहता है। चौधरी के अनुसार चाइना भी इस बात से आजिज आया हुआ है कि, आखिर वह कब तक और क्यों यूएनओ में मसूद अजहर को प्रतिबंधित होने से बचाए? कहासुनी खूब हुई बताई। अन्य बातों के साथ इस बैठक की दो बातों पर ध्यान दिया जाना बहुत जरूरी है। पहले जब झगड़ा ज्यादा बढ़ा और सारे खराबे का दोष सेना तथा आईएसआई पर आया तब उसे बचाया प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने और यह कहकर कि, अब तक जो भी हुआ है वह सेना का अकेले नहीं, हम सबका निर्णय है। देश का निर्णय हैं इसलिए, तोहमत अकेले सेना और आईएसआई पर जडऩा ठीक नहीं है। दूसरे जब-जब कट्टरपंथियों पर सख्ती की बात आई तो छोटे नवाज (पंजाब के मुख्यमंत्री और शरीफ के छोटे भाई) शाहनवाज, कार्रवाई चाहने वालों के साथ खड़े नजर आए। तब तय हुआ कि, इस टारगेट को पूरा करने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नसीर जंजुआ और आईएसआई के डीजी रिजवान अख्तर साथ-साथ पाकिस्तान के चारों प्रांतों का दौरा करें। यह दौरा होगा, नहीं होगा, होगा तो क्या वाकई कोई नतीजे आएंगे, यह भविष्य के गर्भ में है लेकिन भारत के लिए इसका एक संदेश और ज्यादा चौकन्ना रहने का है। इस बात में कोई शक नहीं कि, देश की सत्ता पर कोई पार्टी बैठे और कोई पीएम हो, सभी की चिंता देश की रक्षा करना होता है लेकिन जब सामने चीन जैसा शातिर और पाकिस्तान जैसा उसका उपनिवेशी व्यवहार वाला देश हो तब उनसे अच्छे व्यवहार की तो उम्मीद करना ही बेकार है। यहां इस बात का भी उल्लेख करना जरूरी है कि, इन महीनों में बड़े की बनिस्पत ‘छोटे शरीफ’ की चीन से नजदीकियां ज्यादा बढ़ी हैं। ‘चीन-पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरिडोर’ जिसे पाक से ज्यादा चीन अपनी गोल्डन फ्यूचर लाइन मानता है उसे समय से सुरक्षित पूरा कराने के लिए शाहनवाज के साथ सेनाध्यक्ष राहिल शरीफ ने भी चीन सरकार से बड़े-बड़े वादे किए हैं। राहिल का खुद का टर्म नवम्बर में खत्म हो रहा है। वे रहेंगे या जाएंगे इसमें शाहनवाज के साथ चीन का दखल भी महत्वपूर्ण हो सकता है। इस माहौल में हमें अपने ‘अच्छे दिनों’ के लिए बहुत ही चाक-चौबंद रहने की जरूरत है। नहीं तो खंजर हर हाथ में है।